रक्तरंजित – Anjali Sevak

About Poetry

“रक्तरंजित” is a poem by poet Anjali Sevak. The poem is a part of the “Naari Hai Narayani: Yatra Naryastu Pujyante” poetry compilation book published under the Shabd Vandana project on account of Women’s Parv 2023.


रक्तरंजित

रक्तरंजित
मैं प्रकृति हूं, अपवित्र प्रमाण नहीं।
रक्तरंजित
मैं सर्जनहार हूं, अस्पृश्य छाया नहीं।
रक्तरंजित
मेरा अस्तित्व है, मुझसे ही तेरा जन्म हुआ।
रक्तरंजित
भले वस्त्र हों, यह वस्त्र ही हथियार हैं।
रक्तरंजित
ये काया है, इसीकी तो तुजे माया है।
अए पुरुष ऋतुचक्र को जो तू कोसता है, अपने स्त्रावो को भी संतोषता है!
रक्तरंजित
मैं होती हूं, जब तेरे निकट मैं सोती हूं।
अए पुरुष, अपने कर्म या दुष्कर्म का भार मुज पर क्यों ढोता है?
रक्तरंजित
मेरी छवि, अए धर्म, समाज अए संस्कृति,
तुजे क्यों इतनी खलती है?
रक्तरंजित
है कामाख्या, दुर्गा और काली,
क्यूं इनकी भक्ति चलती है?
रक्तरंजित
भले मैं हूं पर दाग़ तो तुज पर भी लगते हैं,
अए संसार जब तेरे हाथों नारी के दम यूं घुटते हैं!
रक्तरंजित
है हर वो रिश्ता, जो पुरूष प्रधान कहलाता है,
क्यूंकि वह रिश्ता हर नारी को रक्त के आंसू रुलाता है।
रक्तरंजित
है शौर्य, संरक्षण और स्वतंत्रता, तू इनको क्यूं सराहता है?
है मेरे भी यह गुणधर्म क्यों मुज पर कीचड़ उछालता है!
रक्तरंजित
सिर्फ़ मैं नहीं तेरी आंखे और तेरी बुद्धि है,
जो रक्तरंजित सूर्य को यू लाल तू बताता है।


NOTE: The originality of the poetry is confirmed by the author. The author shall be responsible for any liability.


REFERENCES